हिंदी फिल्म लव के फंडे के लेखक-निर्देशक इन्द्रवेश योगी से एक मुलाक़ात।
ऍफ़आरवी बिग बिज़नेस एंटरटेनमेंट प्राईवेट लिमिटेड’ के बैनर तले बनी रोमांटिक कॉमेडी फिल्म, ‘लव के फंडे’ का निर्माण फ़ाएज़ अनवार और प्रेम प्रकाश गुप्ता किया है।जोकि आज के युवा वर्ग पर बनी है, इस फिल्म से निर्देशक की पारी स्टार्ट करने जा रहे हैं,युवा निर्देशक इन्द्रवेश योगी।
जो इसके लेखक भी हैं और हरियाणा के रहनेवाले है। सीनियर सेकंडरी स्कूल, मातनहेल से स्कूल, जाट कॉलेज, रोहतक से ग्रेजुएशन और एम डी यूनिवर्सिटी, रोहतक से पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। उसके बाद दिल्ली में और मुंबई में काफी समय थिएटर, फिल्म,टीवी, विज्ञापन फिल्म में लेखन और निर्देशन किया। और कई बार अपने गोल को अचीव करने के लिए और सर्वाइवल के लिए घोस्ट राइटिंग और निर्देशन भी टीवी और फिल्मों का करना पड़ा। आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और अब जाकर बतौर फिल्म निर्देशक उनकी पहली रोमांटिक कॉमेडी फिल्म,’लव के फंडे’ १५ जुलाई २०१६ को रिलीज़ होने जा रही है। वे हरियाणा के रहनेवाले है,जहाँ के लोग हाज़िर जवाबी के लिए मशहूर है और काफी संघर्ष के बाद यह फिल्म बनाई है। इसलिए आप उनसे उम्मीद कर सकते है कि इस फिल्म में कॉमेडी पंच,टाइमिंग और सबकुछ काफी बहुत ही उम्दा होगा।इसी सिलसिले में लेखक-निर्देशक इन्द्रवेश योगी से की गई भेटवार्ता के प्रमुख अंश प्रस्तुत कर रहे है :-
योगीजी,पहले आप बताएँ कि फिल्म लाइन में कैसे आना हुआ और यहाँ तक के सफर में क्या क्या तकलीफे हुई ?
हरियाणा में जब मैं स्कूल जाता था,तो लोगों को दुकानों में बैठे देखता या कुछ और काम करते देखता था और सोचता था कि ये लोगों की जिंदगी में इंट्रेस्टिंग क्या है? सुबह दूकान खोलते है,शाम को दूकान बंद करके चले जाते है। सिर्फ रोज़ी रोटी के जुगाड़ में जिंदगी पूरी हो जाती है। और जब कॉलेज में आया तो कॉलेज में काफी नाटक लिखे, एक्टिंग किया और निर्देशन किया और लोगों की तालियों ने एक लक्ष्य दे दिया कि फिल्म लाइन में आना था। उसके लिए दिल्ली गया, दिल्ली में बहुत सारी दुकाने खुली हैं, जोकि ऑडिशन के नाम पर लोगों से पैसे लेती हैं और लोगों के भविष्य से खिलवाड़ करती है। उस प्रोसेस ने काफी निराश किया,बाद दिल्ली में थिएटर, फिल्म, टीवी, विज्ञापन के लिए लेखन और निर्देशन किया लेकिन मुझे लगा कि जो मुकाम मैं पाना चाहता हूँ या जो मेरे सपने है,उसके लिए दिल्ली सही जगह नहीं है और मैं अपना बना बनाया बिज़नेस या काम छोड़कर मुंबई आकर फिरसे जीरो से सुरु करने का एक बड़ा कदम उठाया। यहाँ आकर काफी मेहनत की और अपने सपने को पूरा करने के लिए और सर्वाइवल के लिए घोस्ट राइटिंग और निर्देशन भी (टीवी और फिल्मों) का करना पड़ा। बादशाह में फिल्म के निर्माता फ़ाएज़ अनवार से मुलाक़ात हुई और ‘फिल्म,’लव के फंडे’ मिले और अब यह रिलीज़ होने जा रही है।
फिल्म,’लव के फंडे’ के बारे में बताये, यह कैसी फिल्म है और इसके कहानी क्या है ?
यह एक रोमांटिक कॉमेडी फिल्म है। यह आज के यूथ की कहानी है।यह मेट्रो सिटी के हर तीसरे व्यक्ति के साथ घटी कहानी है, सच कहूं तो यह कहानी नहीं लोगों की रियल लाइफ है । आज का यूथ जिसे प्यार कहता है, सही मायने में तो उसे ना प्यार पता है, ना रिलेशन पता है। उनके हिसाब से प्यार के मायने ही कुछ और है।पहले लैला मजनू , हीर राँझा का प्यार होता था, जो एक दूसरे के लिए मर गए लेकिन आजकल तो लोग ब्रेकअप पार्टी भी करते है। यह आज के यूथ की जिंदगी का आईना है। हर युवा को लगेगा कि उनके जीवन की कहानी या कोई इंसीडेंट को परदे पर दिखाया जा रहा है।
फिल्म में नए लोगों को लेने का क्या कारण है और फिल्म की हाईलाइट क्या है ?
यह यूथ की कहानी है। हमें नए और फ्रेश लोग चाहिए थे, जिनकी कोई इमेज ना बनी हो। नए लोग ज्यादा जोश के साथ काफी मेहनत करते है और काम में अपना सौ प्रतिशत डालते है। मैं ऐसा नहीं कहूंगा कि यह फिल्म हट के है या काफी डिफरेंट है। यह युवा पीढ़ी के रियल लाइफ है। जो परदे पर दिखाया गया है। जो लोगों को पसंद आएगा। इस फिल्म का गीत, संगीत, फिल्म के लोकेशन, फिल्मांकन सब कुछ बहुत अच्छा है। हर फिल्म का निर्माता और निर्देशक अपने हिसाब से सुपर हिट फिल्म ही बनाता है, बस ये समझो हमने भी बनाई है। लेकिन फिल्म कैसी है? कितनी अच्छी है? इसमें क्या क्या अच्छा है यह दर्शक फ्राइडे के पहले शो में ही बता देते है। अब दर्शक की बातायेंगे, कैसी फिल्म है ?
जैसे कि आपने बताया था कि आपने कई टीवी सीरियल और फिल्मों के लिए घोस्ट राइटिंग और निर्देशन भी किया था। क्या उन सीरियल और फिल्मों का नाम बताएँगे ?
सर्वाइवल के लिए घोस्ट राइटिंग,निर्देशन भी टीवी और फिल्मों लिए किया था,घोस्ट का मतलब ही होता है जो दिखे ना। यह एक ऐसा प्रोसेस है, जिससे फिल्म इंडस्ट्री के ज्यादातर लोगों को गुजरना पड़ता है। यह सबको पता है। इसके लिए हमारी सभी फिल्म यूनियन को कुछ करना चाहिए। किसी का नाम लेना अच्छा नहीं है। हमने काम किया और पैसा लिए, नाम नहीं मिला। यह हम जैसों की मज़बूरी होती है और वे हमपर बन्दुक रखकर तो काम नहीं कराते है। नए लोग अपने वज़ूद को बनाये रखने के लिए और सर्वाइवल के लिए करते है।
क्या आप फिल्म के साथ साथ धारावाहिकों का भी निर्देशन करेंगे?
काम कोई भी छोटा बड़ा नहीं होता है। आज काफी लोग टीवी और फिल्म दोनो में बराबर और अच्छा काम कर रहे है। कहानी, स्क्रिप्ट और बाकी टीम अच्छी हो तो उसमे काम करने में मज़ा आता है। मैं हमेशा कुछ अलग और नया करना चाहता हूँ। अच्छी ऑफर मिले तो मैं जरूर धारावाहिकों का भी निर्देशन करूँगा।
भविष्य की क्या योजना है ?
अभी दो – तीनो फिल्मों की कहानी पर काम कर रहा हूँ,जल्दी फ्लोर पर जाएंगी। जीवन में अच्छा काम करना चाहता हूँ, जिससे लोग मुझे एक टैलेंटेड निर्देशक के तौर पर याद रक्खे। बाकी योजनाएं काफी बड़ी हैं लेकिन मुनासिब वक़्त आने पर बताऊंगा। अभी छोटा मुंह बड़ी बात होगी।